मोहित की परीक्षा लगभग खत्म हो चुकी थी। उसका कॉलेज पूरा हो गया था। उसने पहले से ही रेलवे का टिकट बुक कर रखा था। घर जाने के लिए वह बेचैन हो रहा था। उसने अपने कपड़े और सामान बैग में भर लिया था। रहने वाले कमरे का किराया चुका दिया था। शाम की ट्रेन थी। लगभग 18 घंटे के सफर के बाद वह अपने घर पहुँचने वाला था। मोहित की उम्र बाईस साल थी। वह अभी तक किसी स्त्री या युवती के संपर्क में नहीं आया था।
शाम चार बजे वह रेलवे स्टेशन पर पहुँचा। ट्रेन आने में अभी वक्त था। ट्रेन में खाने के लिए उसने कुछ सामान और पानी की बोतल ले ली। पंद्रह-बीस मिनट में ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ गई। वह अपने डिब्बे में घुसा। उसकी सीट नीचे की थी। अपनी जगह पर बैठकर वह आगे क्या करना है, कौन सा कोर्स चुनना है, इस बारे में सोच रहा था। मोहित के पिता अच्छे पद पर नौकरी करते थे। घर की स्थिति अच्छी थी, इसलिए उसे अपना करियर बनाने के लिए अच्छा मौका था। उसकी एक छोटी बहन पढ़ाई कर रही थी, जो मोहित की तरह ही पढ़ाई में होशियार थी।
ट्रेन में ज्यादा भीड़ नहीं थी। ट्रेन शुरू होने से कुछ क्षण पहले एक युवती डिब्बे में आई और मोहित के पास पहुँची। उसकी उम्र करीब तीस-बत्तीस साल रही होगी। साँवले रंग की वह युवती वाकई बहुत सुंदर थी। बड़ी-बड़ी बोलती आँखें, नाक सीधा और नुकीला, गालों पर गुलाब खिले हुए से लगते थे। उसके होंठों से मानो अमृत टपक रहा हो। उसके लंबे, काले घने बाल उसके नितंबों को छू रहे थे। उसने साड़ी पहनी थी। ब्लाउज से उसके भरे हुए स्तन उभरे हुए दिख रहे थे। पतली कमर और कमर के नीचे का उभार बेहद आकर्षक था। कुछ पल वह उसे देखता ही रहा। उसने चंद क्षणों में उसका पूरा मुआयना कर लिया। उसका रूप-यौवन किसी भी युवा को लुभाने वाला था। उसे देखते हुए उसने पूछा, “आपका सीट नंबर कितना है?” “मेरा ग्यारह नंबर है,” मोहित ने कहा। उसका सीट नंबर बारह था—मोहित की ऊपर वाली सीट। वह अकेली थी।
वह खिड़की की ओर सरककर बैठ गया। वह उसके बगल में बैठते हुए बोली, “प्लीज, क्या आप मेरा सामान रखने में मदद करेंगे?” मोहित ने उसकी मदद की और सारा सामान उसकी सीट के नीचे ठीक से रख दिया। वह ऊपर न जाकर उसके पास ही बैठ गई। उसके शरीर की मादक खुशबू उसे महसूस हो रही थी। उसकी नजर बार-बार उसकी ओर जा रही थी। वह उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली। एक घंटे में पहला स्टेशन आया। ट्रेन रुकते ही उसने चायवाले को आवाज़ देकर बुलाया। उसने चाय ली, तो मोहित ने भी चाय ले ली। वह पैसे देने लगी। “रुकिए मैडम, मैं देता हूँ पैसे,” कहकर उसने दोनों चाय के पैसे दिए। एक-दूसरे से बात करते हुए दोनों चाय पीने लगे। वह आराम से बैठी थी। “मेरे नीचे बैठने से आपको तकलीफ तो नहीं हो रही ना?” उसने पूछा। “इसमें तकलीफ कैसी? उलट सफर में कोई बात करने वाला साथी हो तो बहुत अच्छा लगता है। अभी तो बस आठ बजे हैं। इतनी जल्दी नींद थोड़े ही आएगी? आप आराम से नीचे बैठिए,” मोहित ने कहा। उसके बगल में बैठने से उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसे एक अजीब सा आनंद हो रहा था। कुछ देर दोनों चुप रहे।
फिर मोहित ने पूछा, “आप कहाँ जा रहे हैं?” “मैं मुंबई अपनी मौसी के पास जा रही हूँ,” उसने कहा। “आपके मिस्टर साथ नहीं आए?” मोहित को उससे बात करने का मन था। पति का ज़िक्र करते ही उसके चेहरे के भाव बदल गए। चेहरे पर गुस्सा दिखाई देने लगा। गुस्से में बोली, “उस नालायक की याद भी नहीं करती मैं। उसने मेरी ज़िंदगी बर्बाद कर दी। शादी से पहले से ही उसका एक शादीशुदा औरत के साथ अफेयर था। ये बात पता चलते ही मैं मायके चली आई। दोबारा उसके पास नहीं जाऊँगी। उससे तलाक लेने के लिए मैंने कोर्ट में अर्जी दी है।” उसके गुस्से के शांत होने तक मोहित कुछ नहीं बोला। उसके चेहरे के भाव सामान्य होने पर उसने पूछा, “मायके में क्या करती हैं आप? नौकरी वगैरह?” “हमारे पास फलों के तीन बड़े बगीचे हैं। भाई इंजीनियर है, उसे वहाँ वक्त नहीं मिलता। मैं ही सब देखभाल करती हूँ। मुझे ये काम पसंद भी है। आप क्या करते हैं?” उसने पूछा।
“मेरा कॉलेज अभी पूरा हुआ है। अब घर जा रहा हूँ,” उसने कहा। “आगे का क्या प्लान है?” वह उसकी जानकारी ले रही थी। उसे भी उससे बात करने में रुचि थी। “देखते हैं, पिताजी क्या कहते हैं,” कहकर उसने खाने का सामान निकाला। दोनों के बीच रखते हुए बोला, “लीजिए, आप भी खाइए।” “नहीं, मैं खाकर आई हूँ,” उसने उसकी आँखों में देखते हुए कहा। “अरे, लीजिए ना, संकोच मत करिए,” उसके आग्रह पर वह भी खाने लगी। अनजाने में सामान लेते वक्त उसका हाथ उसकी जाँघ को छू रहा था। वह जानबूझकर उसकी जाँघ को छूने लगा। वह कुछ नहीं बोली। शायद उसे भी उसका स्पर्श अच्छा लग रहा हो। एक युवती का पहली बार इतने खुलेपन से बात करना उसके मन को भा रहा था।
“कॉलेज में कोई गर्लफ्रेंड थी या नहीं?” अचानक उसने पूछा। इस सवाल पर उसने उसकी ओर चौंककर देखा। उसके होंठों पर मुस्कान थी। “नहीं… मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी,” मोहित ने कहा। “आप जैसे देखने में अच्छे लड़के की गर्लफ्रेंड न हो, ये तो कमाल है,” वह खुलकर बोल रही थी। “मैंने किसी लड़की से ज्यादा नजदीकी कभी की ही नहीं,” उसने कहा। उसके ‘देखने में अच्छे’ शब्दों ने उसके मन को खुश कर दिया। आठ बज चुके थे। बाहर घना अंधेरा छा गया था। ट्रेन लगभग खाली थी। कोई यात्री उनकी ओर देख रहा था, क्योंकि दोनों बहुत आत्मीयता से बात कर रहे थे।
कुछ देर बाद मोहित ने पैर ऊपर उठाकर माँडी पर माँडी रखकर आराम से बैठ गया। वह थोड़ा सरककर बैठी। उसे भी माँडी रखने की जगह थी। बीच-बीच में उसकी नजर उसके भरे हुए स्तनों पर ठहर रही थी। उसके स्तनों की हलचल उसे उत्तेजित कर रही थी। वह भी उसकी ओर देख रही थी। “आप थक गए होंगे, माँडी रखकर आराम से बैठिए,” मोहित ने कहा। “आप मेरी ओर पैर करिए, मैं आपकी ओर पैर करती हूँ। पैर लंबे करने से हमें आराम मिलेगा,” उसने कहा। उसने उसके सामने पैर किए, मोहित ने उसके सामने। दोनों पीछे टेककर आराम से बैठ गए। उनके पैर एक-दूसरे के नितंबों के पास थे। ट्रेन के झटकों से उनके पैर एक-दूसरे के नितंबों को छू रहे थे। उसके स्पर्श से मोहित रोमांचित हो रहा था। यह उसका पहला स्त्री-स्पर्श था। उसके मादक स्पर्श से उसका लंड तन गया। वह जानबूझकर उसकी जाँघ को छूने लगा। वह कुछ नहीं बोली। उसके मन में भी कुछ चल रहा होगा, ऐसा उसे लगा। “अरे, आराम से बैठिए। आपके पैरों का स्पर्श मुझे लगे तो भी चलेगा,” उसने जैसे मूक सहमति दी।
रात के दस बज गए थे। वह ऊपर की सीट पर सोने नहीं जा रही थी। डिब्बे की लाइट्स चालू थीं, लेकिन उनकी सीट के पास की लाइट बंद थी। मोहित ने बैग से शाल निकालकर अपने चारों ओर लपेट ली। बात करते-करते दोनों को एक-दूसरे का नाम पता चल गया—उसका नाम अमृता था। “मोहित, सच में तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है?” अमृता ने फिर छेड़ा। “गर्लफ्रेंड नहीं है, लेकिन…” उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया। “लेकिन क्या?” उसने तुरंत पूछा। “कुछ नहीं… आपको बुरा लगेगा,” मोहित ने कहा। “मुझे बुरा नहीं लगेगा रे, और हाँ, मुझे सिर्फ अमृता कहो,” उसने कहा। “गर्लफ्रेंड नहीं थी, लेकिन मैंने बहुत मस्ती की है,” मोहित ने कहा।
वह भी उत्तेजित हो गई होगी। वह सीट पर पीठ के बल लेट गई। उसके पैर उसके सिर के पास आ गए। उसका तना हुआ लंड उसके नितंबों को छू रहा था। लंड को संभालने के लिए उसने हाथ नीचे लिया। उसी पल अमृता ने उसका हाथ पकड़ लिया। उसे यकीन हो गया कि वह तैयार है। उसका हाथ उसके खुले पेट पर टिक गया। उसके मुलायम पेट को वह धीरे-धीरे सहलाने लगा। उसके पेटीकोट में हाथ डालकर वह उसकी जाँघें सहलाने लगा। वह पूरी तरह गरम हो चुकी थी। मोहित के स्पर्श से उसकी भावनाएँ भड़क उठी थीं। वह उठी और उसके सिर के पास सिर रखकर लेट गई। अब दोनों एक-दूसरे से चिपककर लेटे थे।
ठंड लग रही थी, इसलिए दोनों ने शाल ओढ़ ली। एक-दूसरे के शरीर की गर्मी उन्हें मिल रही थी। मोहित ने उसके गाल का चुम्बन लिया। ब्लाउज के ऊपर से ही वह उसके सुडौल स्तनों को दबाने लगा। उसने उसका लंड हाथ में लेकर सहलाना शुरू किया। वह उसके स्तन दबा रहा था। फिर उसने उसके ब्लाउज में हाथ डाला और ब्रा में हाथ घुसाकर उसके स्तनों को मसलने लगा। उसे रहा नहीं जा रहा था। उसने उसके ब्लाउज के बटन खोले, ब्रा ऊपर सरकाई और उसके भरे हुए स्तनों को जोर-जोर से दबाने लगा। उसके मुँह से निकलने वाली चीखें वह दबाने की कोशिश कर रही थी। मद्धम रोशनी में उसके भरे हुए स्तन देखकर वह बेकाबू हो गया। उसके दोनों स्तनों को बारी-बारी से चूसने और दबाने लगा। उसका लंड उसकी चूत में घुसने के लिए तड़प रहा था। वह उसके मादक शरीर का आनंद लेने को बेताब था। लेकिन सीट पर ऐसा करना जोखिम भरा था।
“मोहित, मैं बाथरूम में जाती हूँ। थोड़ी देर बाद तुम भी आ जाना। वहाँ हम कामक्रीड़ा करेंगे,” कहकर वह उठी। बाथरूम में जाकर उसकी राह देखने लगी। थोड़ी देर बाद वह आया। उसे अंदर लेते ही उसने दरवाज़ा बंद कर दिया। वह भी संभोग के लिए आतुर थी। उसके स्तन चूसने के बाद उसने उसकी साड़ी ऊपर की और पैंटी उतार दी। उसकी फूली हुई चूत पर एक भी बाल नहीं था। उसकी चमकती चूत को वह उँगलियों से सहलाने लगा। उसने भी उसका लंड बाहर निकाला और धीरे-धीरे हिलाने लगी। वह नीचे बैठ गई और उसका लंड मुँह में लेकर चूसने लगी। मोहित मानो हवा में तैरने लगा। थोड़ी देर बाद वह उसकी ओर पीठ करके झुककर खड़ी हो गई। उसने उसके नितंब फैलाए और चूत पर होंठ रख दिए। वह बहुत गरम हो चुकी थी। उसकी चूत से पानी रिस रहा था। चूत चाटते वक्त उसका रस उसकी जीभ पर आ रहा था। वह बड़े चाव से चाट रहा था। उसने उसे चूत में लंड डालने का इशारा किया। वह भी बेताब था। उसके पैर फैलाकर उसने लंड अंदर घुसेड़ा। लंड अंदर सरकते ही वह सुख से चीख पड़ी। उसके स्तन दबाते हुए वह धक्के मारने लगा। वह भी आगे-पीछे होकर उसका साथ देने लगी। दोनों की रफ्तार बढ़ गई थी। वह लगातार धक्के पर धक्के मार रहा था। वह पीछे मुड़कर उसे और जोर से धक्के देने को कह रही थी। कुछ मिनटों में उसका लंड उसकी चूत में वीर्य छोड़कर खाली हो गया। उस रात दोनों ने तीन बार संभोग का आनंद लिया और सुबह ट्रेन से उतरकर एक-दूसरे से सुखद विदाई ली।
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