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“हाय सोनी… मेरा डंडा तेरी योनि में डाले बिना ही तेरी योनि की आग ठंडी हो गई…” संजीव ने कहा। उसकी प्रेम भरी छेड़खानी से ही मैं एक बार झड़ चुकी थी। संजीव हाल ही में मेरे बंगले में नौकर के तौर पर काम पर लगा था। मेरे पति से वह कहीं ज्यादा हट्टा-कट्टा था। पति से पूरी न होने वाली वासना को मैं उससे पूरा करने का इरादा कर चुकी थी। “नहीं रे राजा… मैं फिर से तैयार हूँ… अब तू भी मैदान में कुश्ती खेलने के लिए तैयार रह,” उससे लिपटते हुए मैंने कहा। उस पल वह मुझे कामदेव का अवतार लग रहा था। मेरी योनि में फिर से हलचल मचने लगी थी। उसका बाँस जैसा तना हुआ डंडा मेरी योनि को छू रहा था। मेरे शरीर में वासना की हवा भरने लगी थी। आँखें बंद करके मैं अपनी योनि को उसके डंडे पर रगड़ रही थी। उसकी प्रेम भरी हरकतों से मैं आनंदित होकर किसी गुड़िया की तरह उसकी गर्दन से लटककर झूलने लगी थी। “सोनी… मेरी छेड़खानी से तू फिर झड़ गई और मैं तड़पता रह गया तो… तेरे यौवन का रस चखने की मेरी इच्छा अधूरी रह जाएगी,” मेरी आँखों में देखते हुए उसने कहा।

“नहीं रे राजा… इस बार मैं तुझे तड़पने नहीं दूँगी। तुझे जो चाहिए वो तू कर सकता है,” मैंने कहा। “जैसी आज्ञा रानी साहिबा,” कहते हुए वह मेरे सामने बैठ गया। मैं उसके डंडे को देखती ही रह गई। मेरे पति का डंडा बहुत छोटा था। मेरे जैसी औरत को वह कैसे संतुष्ट कर सकता था? संजीव का डंडा देखकर मेरी वासना भड़क उठी। उसकी फड़फड़ाहट देखकर मुझे अहसास हो रहा था कि वह मेरी योनि में घुसने के लिए कितना बेताब है। मैं नीचे झुककर उसके डंडे से प्यार करने लगी। कितना मोटा और लंबा था उसका डंडा… वासना से एकदम गरम हो गया था। यह डंडा मेरी चूत में जाकर मुझे परम सुख देने वाला था। उसका फड़फड़ाता डंडा देखते ही रहने लायक था। उसका गोरा डंडा और ऊपर की लाल सुपारी देखकर मन कर रहा था कि इसे फटाक से चूत में समा लूँ। समुद्र में पानी को ज्वार आए जैसे मेरे अंदर की वासना में उफान आ गया था। ऐसे समय में इंसान का तन-मन उसके काबू में नहीं रहता। मेरी भी वही हालत हो गई थी। मैंने उसके डंडे को होंठों से छुआ। “अहं… नहीं सोनी,” वह पीछे सरकते हुए बोला। “क्यों नहीं चाहिए?” मैंने पूछा। “मुझे भी तेरी योनि का चुम्बन लेने दे…” उसने अपनी इच्छा जाहिर की।

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“तुझे जो चाहिए वो तू कर राजा… लेकिन इस बार मुझे मत रोक,” कहते हुए मैंने गुलाब जामुन की तरह उसके डंडे की टोपी को होंठों में ले लिया। वह मेरी पीठ सहलाने लगा। धीरे से मेरे बालों पर हाथ फेरने लगा। उसके हाथ मेरे स्तनों पर आए तो मेरी साँसें तेज हो गईं। फिर उसने मुझे पीठ के बल लिटाया और मेरी रस से भरी चूत पर चुम्बनों की बरसात शुरू कर दी। मुझे आनंद से पागल होने की नौबत आ गई थी। मैं फिर उठकर बैठ गई। वह जाँघें फैलाकर बैठा था। मैंने उसका डंडा हाथ में लिया और मुँह में लेकर चूसने लगी। तन-मन में उन्माद की लहरें उठने लगीं। मेरी योनि और उसके डंडे की आज जबरदस्त लड़ाई होने वाली थी। मेरी अधूरी चूत उसके डंडे को देखकर हँस रही थी। उसका डंडा ऊपर-नीचे फड़फड़ा रहा था। मैं उसका लंड सहलाते हुए चीख रही थी। उसकी कमर पकड़कर मैंने उसे अपनी ओर खींचा। उसका डंडा मेरी गरमागरम योनि पर रखा। मैंने अपनी योनि की ओर देखा। उंगलियों से योनि को फैलाया। तरबूज पर चाकू से चीरा पड़े जैसे मेरी योनि लाल-गुलाबी होकर चमक रही थी। उसकी फूली हुई टोपी मेरी योनि पर रगड़ रही थी, जिससे मेरी वासना और भड़क रही थी। उसका दमदार डंडा पूरी तरह योनि में लेने के लिए मैं बेताब हो गई थी। मेरी योनि में अजीब सी हलचल मच रही थी, जो मुझे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मेरा पूरा शरीर वासना से जाग उठा था, जल उठा था।

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पति के साथ मैं कभी इतनी उत्तेजित नहीं हुई थी। उसे औरत को खुश करने की कला नहीं आती थी। वह पति-पत्नी को सिर्फ नर-मादा समझता था। मेरी इच्छा हो या न हो, वह मुझे नंगा करके कुछ पल प्रेम भरी छेड़खानी करता और फिर अपनी औज़ार मेरी योनि में डालकर घुसेड़ देता था। तब तक मैं उत्तेजित भी नहीं होती थी, लेकिन वह अपनी इच्छा पूरी करके अलग हो जाता था। मैं अतृप्ति की आग में जलती रहती थी।

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इसी बीच पति गाँव से संजीव को बंगले पर काम के लिए लाया था। बाईस-तेईस साल का संजीव तंदुरुस्त और गोरा था। वह बंगले का काम करता था, लेकिन उसे देखते ही मैं बेचैन हो गई थी। उससे अपनी अधूरी वासना शांत करने का फैसला मैंने कर लिया था। वह भी मुझे लालची नजरों से देखने लगा था। उसकी वासना भड़काने में मुझे देर नहीं लगी। आखिरकार एक दिन मैंने उसे अपने जाल में फँसा ही लिया। आज मैं उससे अपनी अधूरी वासना मिटाने वाली थी। उसमें का कामदेव मुझे एक पल में महसूस हो गया था। उसके सिर्फ स्तन चूसने और योनि चाटने से मैं एक बार तृप्त हो चुकी थी। अब उसके साथ संभोग के समुद्र में डुबकी लगाने वाली थी। उसकी ऊपरी छेड़खानी से मैं एक बार झड़ चुकी थी, लेकिन इस बार उसका डंडा योनि में लिए बिना मेरी चूत की आग शांत नहीं होने वाली थी। जैसे कभी-कभी कान में खुजली होती है और छोटी उंगली डालकर हिलाने से ही वह शांत होती है, वैसे ही उसका डंडा योनि में गए बिना मेरी वासना शांत नहीं होने वाली थी।

उसके फड़फड़ाते डंडे को देखकर मेरी योनि की आग और तेज हो रही थी। योनि के होंठ काँप रहे थे। दाना फड़फड़ा रहा था। योनि से कामरस का झरना बह रहा था, जो बाहर तक फैल रहा था। उसकी आग सहन न होते हुए भी उसके डंडे की फड़फड़ाहट देखकर मुझे अनोखा आनंद मिल रहा था। जीवन में पहली बार मैं ऐसा दमदार डंडा देख रही थी। मेरी कल्पनाओं को उसका डंडा इतना पसंद आया था कि मन कर रहा था इसे तोड़कर योनि में हमेशा के लिए डाल दूँ।

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हर पल उसके डंडे की फड़फड़ाहट और तनाव बढ़ रहा था। उसकी नीली नसें गरम होकर फूल गई थीं। मेरी योनि का गरम स्पर्श होते ही उसकी फड़फड़ाहट और बढ़ गई थी। मैं न रहकर उसकी जाँघों पर बैठ गई। दोनों पैर उसकी कमर के चारों ओर लपेट दिए। मैं उसकी मालकिन थी, और वह मुझसे आठ साल छोटा था, इसलिए थोड़ा हिचक रहा था। लेकिन उसके मन की डर को निकालने में मैं कामयाब हो गई थी। उसने अपने दोनों हाथ मेरी कमर के चारों ओर लपेटे। मेरे स्तन वह चूसने लगा। मैं उन्माद से जल उठी। योनि के होंठ फैलाकर मैंने उसके डंडे की टोपी चूत के होंठों में समा ली। एक सुखद चीख मेरे मुँह से निकल पड़ी। वह मुझे टकटकी लगाकर देख रहा था। “हाय रे… अब इसे पूरा अंदर कैसे लूँ?” मेरे मुँह से अचानक निकल पड़ा। वह हँसा और मेरे गाल का चुम्बन लेकर बोला, “सोनी… थोड़ा दर्द सहन कर ले, फिर देख तेरी इस खूबसूरत चूत में ये डंडा कितनी मस्ती से घुसता है…” उसने कहा। “हाँ, जैसा तुझे करना है कर… मैं तैयार हूँ। इसके लिए ही बेताब हूँ… डाल, जैसा तुझे चाहिए वैसे डाल मेरी चूत में और मुझे तृप्त कर,” मैं उत्तेजना से बोलने लगी थी। मेरे चेहरे पर कामवासना की आग भड़क रही थी। उसका लंड सरसराकर चूत में घुसा, तो ऐसा सुखद अहसास हुआ कि आँखें बंद करके चीखें निकल पड़ीं। संजीव जोर-जोर से डंडा अंदर-बाहर करते हुए धक्के देने लगा। महज पाँच मिनट में उसने मुझे पूरी तरह शांत कर दिया।

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