मस्त मराठी स्टोरीज वाचा

हेल्लो दोस्तों, मेरा नाम फिरोज है। आज मैं आपको अपनी जिंदगी की एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जो उस वक्त की है जब मैं 12वीं कक्षा में था। उस समय मुझे फिल्में देखने का बहुत शौक था और मैं सोचता था कि काश मुझे भी कभी ऐसा मौका मिले। हमारे पड़ोस में एक दंपति रहते थे। उनके दो साल की दो जुड़वाँ बेटियाँ थीं और मैं कभी-कभी उनके घर जाकर बच्चों के साथ खेलता था। मैं उस आंटी को रुखसाना काकी कहता था। उनके पति का पास में ही स्क्रैप का बड़ा व्यवसाय था और उनकी पड़ोसन का पति भी उनके साथ काम करता था। जब मैं बच्चों के साथ खेलता था, तो मेरा ध्यान कभी-कभी रुखसाना काकी की ओर जाता था। उनकी खूबसूरती और सादगी मुझे आकर्षित करती थी।

एक दिन की बात है, मैं कॉलेज से जल्दी घर लौटा। घर पर कोई नहीं था और दरवाजे पर ताला लगा था। तभी रुखसाना काकी ने खिड़की से मुझे बुलाया। मैं उनके फ्लैट पर गया। उन्होंने बताया कि मेरे घरवाले बाहर गए हैं और उन्हें आने में देर होगी। मैं उदास होकर बोला, “तो मैं तब तक कहाँ रहूँ?” वो हँसकर बोलीं, “क्यों, अपनी रुखसाना काकी के पास नहीं रह सकता?” मैं मन ही मन खुश हुआ और बोला, “काकाजी को बुरा तो नहीं लगेगा न?” वो हँसकर बोलीं, “उन्हें क्यों बुरा लगेगा? वैसे भी वो यहाँ नहीं हैं। बच्चों को लेकर अपनी माँ के पास गए हैं और कल तक आएँगे।”

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ये सुनकर मैं बहुत खुश हुआ। फिर मैंने पूछा, “बच्चे नहीं हैं तो मैं यहाँ बैठकर क्या करूँगा? बोर हो जाऊँगा।” वो बोलीं, “क्यों, टीवी देखो और मेरे साथ बातें करो। इसमें तो बोरियत नहीं होगी न?” दोस्तों, उस दिन मेरे मन की इच्छा पूरी होने वाली थी। मैंने हाँ कहा और सोफे पर बैठ गया। थोड़ी देर काकी से बात करने के बाद मैं टीवी देखने लगा। वो किचन में चली गईं। तभी दरवाजे की घंटी बजी। मैंने दरवाजा खोला तो देखा कि पड़ोस की आंटी खड़ी थीं। मुझे देखकर वो चौंकीं और बोलीं, “फिरोज यहाँ कैसे?” इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, काकी बोलीं, “फिरोज के घरवाले बाहर गए हैं, इसलिए वो यहाँ रुका है।” आंटी अंदर आईं और काकी के साथ किचन में चली गईं। दोनों हँसते हुए बातें करने लगीं।

थोड़ी देर बाद मुझे प्यास लगी तो मैं किचन की ओर गया। दरवाजे के पास रुककर उनकी बातें सुनने लगा। काकी का बोलना सुनकर मैं हैरान रह गया। वो आंटी से बोलीं, “आज अच्छा मौका है। चाहे तो कुछ प्लान कर लें।” आंटी बोलीं, “अगर किसी को पता चल गया तो?” काकी ने कहा, “चिंता मत करो, किसी को नहीं पता चलेगा। ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा।” उनकी बात सुनकर मैं बाहर आया और ऐसे बैठ गया जैसे मुझे कुछ पता ही न हो। मुझे समझ आ गया कि वो कुछ छुपा रही हैं, लेकिन क्या, ये समझ नहीं आया।

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तभी काकी मेरे लिए चाय लेकर आईं और पीने को कहा। पहले मैंने सोचा कि मना कर दूँ, लेकिन फिर सोचा कि देखूँ तो सही, ये क्या करने वाली हैं। मैंने कप लिया और कहा, “मैं थोड़ी देर बाद पीऊँगा।” काकी किचन में गईं। मैं फटाफट उठा, बालकनी में गया और चाय कोने में फेंक दी। फिर सोफे पर लेटकर बेहोशी का नाटक करने लगा, लेकिन आँखें थोड़ी खुली रखीं। जैसे ही मैं सोफे पर लेटा, काकी और आंटी किचन से दौड़कर बाहर आईं और मुझे देखने लगीं। काकी बोली, “लगता है बेहोश हो गया।”

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आंटी: “मुझे भी ऐसा ही लगता है, लेकिन इसकी आँखें थोड़ी खुली हैं।”
काकी: “अरे, बेहोशी में कभी-कभी ऐसा होता है।”
काकी: “तो फिर इंतजार किस बात का? चलो, इसे बेडरूम में ले चलें।”

बेडरूम का नाम सुनकर मैं थोड़ा घबराया, लेकिन चुपचाप पड़ा रहा। काकी ने मेरे हाथ और आंटी ने पैर पकड़े और मुझे बेडरूम में ले जाकर बेड पर लिटा दिया।

काकी: “तो शुरू करें?”
आंटी: “हाँ, क्यों नहीं? बहुत दिन हो गए कुछ खास पलों के लिए तरस रही हूँ। आज तो ये प्यास बुझानी ही होगी।”

उनके मुँह से ये सुनकर मैं चौंक गया, लेकिन चुप रहा। फिर जो हुआ, वो मैंने कभी सोचा भी नहीं था। उन्होंने मेरे कपड़े उतारने शुरू किए। जैसे ही मेरी शर्ट-पैंट उतरी, काकी मेरे पास आईं और मेरे गालों व छाती पर हाथ फेरने लगीं। मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। आंटी बोली, “रुखसाना, ये तो जागने जैसा लग रहा है।” लेकिन काकी मूड में थीं और बोलीं, “अरे, ऐसा कभी-कभी होता है। तू अपना काम शुरू कर।” फिर आंटी ने मेरी तरफ ध्यान दिया और दोनों मेरे आसपास बैठ गईं।

फिर काकी मेरे ऊपर आईं और मेरे साथ नजदीकी पल बिताने लगीं। मैंने कुछ न करने का नाटक किया, लेकिन अंदर से बहुत उत्तेजित था। पहली बार ऐसा अनुभव हो रहा था। फिर आंटी भी पास आईं और दोनों बारी-बारी से मेरे साथ वक्त बिताने लगीं। मैं चुपचाप सब सहता रहा। थोड़ी देर बाद काकी थक गईं और मेरे पास लेट गईं। लेकिन आंटी अभी भी उत्साहित थीं। करीब दो घंटे बाद वो दोनों थककर मेरे बगल में लेट गईं।

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तभी मेरा मन फिर से बेकाबू हुआ। मैं उठ खड़ा हुआ। मुझे होश में देखकर काकी और आंटी घबरा गईं। काकी बोलीं, “अरे फिरोज, तो क्या तू बेहोश नहीं था?” मैंने कहा, “हाँ काकी, मैं पूरा होश में था। तुमने मेरे साथ जो किया, वो मैंने देख लिया। अब मुझे इनाम तो चाहिए।”

फिर वही हुआ जो मैं चाहता था। पहली बार मिले इस मौके को मैंने हाथ से नहीं जाने दिया। मैंने काकी और आंटी के साथ खूब मस्ती की। उस दिन मैंने उनके साथ ढेर सारा वक्त बिताया। कभी काकी के साथ, तो कभी आंटी के साथ। दोस्तों, उस घटना को आज पाँच साल हो गए। लेकिन आज भी मौका मिले तो मैं काकी या आंटी के साथ वक्त बिताता हूँ और उनकी खुशी का ख्याल रखता हूँ।

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