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नमस्ते दोस्तों और दोस्तिनों, मेरा नाम आशा है।

ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी सिर्फ़ मनोरंजन के लिए है।

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आज कई दिनों बाद आशा अपनी बड़ी बहन शांता के गाँव राजापुर आई थी। साथ में उसका बेटा पिंट्या भी था। वो 12 साल का था। अभी वो पाँचवीं कक्षा में पढ़ता था। गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू थीं, इसलिए वो मौसी के गाँव आया था। उसने इससे पहले कभी गाँव नहीं देखा था। पहली बार वो गाँव आया था।

इसलिए वहाँ के पहाड़, जंगल, नदियाँ, खेत सब उसके लिए नए थे। उसकी माँ आशा और मौसी उषा दोनों कई सालों बाद एक-दूसरे से मिलने वाली थीं। क्योंकि उषा की शादी होकर वो हमेशा के लिए गाँव में रहने लगी थी। रेलवे स्टेशन से मौसी का घर दूर होने की वजह से आगे बस से सफ़र करना था। दोनों बस में बैठकर घर के लिए निकले। पिंट्या खिड़की पर बैठकर कोकण के प्रकृति का आनंद ले रहा था।

घर पहुँचते ही शांता ने आशा को गले से लगा लिया। दोनों बहनें एक-दूसरे से मिलकर खुश हो गईं, कई सालों बाद उनकी मुलाकात हुई थी। पिंट्या को देखकर मौसी ने उसे प्यार से पास बुलाया और उसके गालों पर हाथ फेरा। शांता ने अपने घर के नौकर को सामान घर में रखने को कहा। घर में शांता के साथ उसका बेटा, उसका पति और एक नौकर, ऐसे चार लोग रहते थे।

शांता के पति को लकवा का दौरा पड़ा था, जिससे वो हमेशा के लिए बिस्तर पर पड़ गया था। इसलिए शांता को घर और खेती के साथ-साथ उसकी भी देखभाल करनी पड़ती थी। इसमें नौकर दिन्या खेती के काम करके उसकी अच्छी मदद करता था। शांता के पति और उसके बीच उम्र का बड़ा अंतर होने की वजह से वो उम्र में थक गया था। 55 साल की उम्र में ही उसे बीमारी ने घेर लिया था, लेकिन शांता 42 साल की जवान औरत थी। एक बेटे की माँ थी। आशा और शांता को अपने परिवार से अच्छी सुंदरता मिली थी। इसलिए दोनों बहनें दिखने में बहुत खूबसूरत थीं।

शांता दिलखुलास स्वभाव की महिला थी। सबके साथ बहुत अच्छे से पेश आती थी। उसकी उम्र भले ही 42 साल थी, लेकिन वो तीस की महिला लगती थी। बेहद खूबसूरत, गोरी त्वचा, उभरा हुआ चेहरा, सीधी नाक, नक्शेदार आँखें। गोरे चेहरे पर लाल चटक होंठ बहुत उभरकर दिखते थे। उसकी छाती तो सुंदरता का खज़ाना थी, और उसके नितंब शोध का विषय थे। मौसी को हमेशा बालों का जूड़ा बाँधने की आदत थी, और उस पर एक अबोली का गजरा रहता था। गोरी त्वचा और काले घने बालों की वजह से उसकी गर्दन हमेशा उभरकर दिखती थी। शांता लगभग साढ़े पाँच फीट लंबी थी। जितनी वो दिखने में सुंदर थी, उतनी ही कंधों और शरीर से भरी हुई थी।

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और आशा के बारे में बताऊँ तो आशा की उम्र 38 साल थी। दिखने में सुंदर, गोरी और आकर्षक शरीर। आशा का फिगर आकर्षक था, इसका कारण था कि उसका पति रोज़ रात को उसे रगड़कर थका देता था। इसलिए उसकी छाती भरी हुई थी, ब्लाउज़ उसे तंग हो जाता था। उसके नितंब यानी कूल्हों का साइज़ भी बढ़ गया था। उसका फिगर 38-25-38 था। 38 साल की उम्र में वो पूरी तरह परिपक्व हो गई थी। उसे देखने वाला कोई भी उसकी ओर आकर्षित हो जाता, ऐसा उसका रूप था। उसे देखते ही कोई भी पुरुष उसे निहारता रह जाता था। कभी उसकी छाती पर नज़र, कभी कमर पर, कभी यहाँ, कभी वहाँ।

नौकर दिन्या 25 साल का था। बचपन में ही उसकी माँ उसे छोड़कर चली गई थी। उसका बाप मुंबई में छोटी-मोटी नौकरी करता था। वो महीने में दिन्या को पैसे भेजता था, लेकिन वो भी दिन्या के लिए काफी नहीं थे। इसलिए मौसी ने उसे 2000 रुपये महीना देकर काम पर रखा था। वो दिखने में ठीक-ठाक था, लेकिन खेत में काम करने से उसका शरीर कसरती हो गया था।

दिन्या भले ही नौकर था, लेकिन वो घर के सारे कामों के साथ-साथ शांता के पति की सेवा भी करता था। अपनी बात करने की कला से उसने सबको अपने करीब कर लिया था। पिंट्या को शांता का बेटा सोनू मिलने से वो अच्छा रम गया था। वो सोनू के साथ दिनभर खेलता था। कभी पकड़म-पकड़ाई, कभी छुपम-छुपाई, तो कभी खेत में घूमने जाता था।

एक दिन पिंट्या और सोनू बाकी बच्चों के साथ छुपम-छुपाई खेल रहे थे। तभी शांता ने दिन्या को आवाज़ दी।

“दिन्या… ए दिन्या… सुन रहा है क्या?”

“हाँ, मालकिन।”
शांता के आवाज़ देते ही दिन्या दौड़ता हुआ आया।

“ज़रा इन अनाज की बोरियों को अनाजघर में रख दे।”

तभी पिंट्या को अनाजघर में छुपने का ख्याल आया। वो अनाजघर में गया और एक कोने में दो बोरियों के पीछे जाकर छुप गया। बोरियों के गैप से वो सब कुछ देख सकता था। तभी दिन्या बोरियाँ लेकर आया। दो-तीन बोरियाँ उसने लाकर रखीं और थककर वहीं बैठ गया और पसीना पोंछने लगा। तभी शांता वहाँ आई और दिन्या को पानी देते हुए बोली, “बहुत थक गया है, पानी पी ले। मैं पंखा चालू करती हूँ।” ऐसा कहकर उसने पंखा चालू किया। पंखे की हवा से दिन्या को राहत मिली। पिंट्या दोनों को आसानी से देख सकता था।

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पानी पीकर दिन्या ने ग्लास पास के टेबल पर रखा और सीधे शांता की कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खींचा और उसके गालों पर चूमने लगा। शुरू में शांता ने नकली विरोध किया, लेकिन उतना ही वो उसे साथ भी दे रही थी। पिंट्या ये सब देखकर हैरान रह गया।

मौसी और दिन्या नौकर के साथ ऐसा देखकर उसका यकीन नहीं हो रहा था। वो बिना आवाज़ किए उनका खेल देखने लगा। मौसी जैसी मादक औरत उसके सामने पल्लू गिराकर खड़ी थी। उसके उस गोरे शरीर पर वो लाल ब्लाउज़ और काली साड़ी उभरकर दिख रही थी।

दिन्या भूखे जानवर की तरह उस पर चूमने की बरसात कर रहा था। उसकी आधी बाहर निकली छाती में वो मुँह डालकर जीभ फेर रहा था। शांता पूरी तरह पागल हो गई थी। उसने सिर ऊपर करके आँखें बंद कर ली थीं। गालों पर हँसते हुए सिर कभी दायीं ओर तो कभी बायीं ओर घुमा रही थी। दिन्या के दोनों हाथ उसकी गोरी कमर पर, पेट पर फिर रहे थे। उसकी भरी हुई छाती पर ब्लाउज़ के बटन उसने फटाफट खोल दिए।

ऐसा करते ही उसके दोनों बॉल्स आज़ाद हो गए। वो बारी-बारी से उसके बॉल्स चूसने लगा। शांता अच्छी तरह भड़क उठी थी। वो आँखें बंद करके ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रही थी। दिन्या तो भूखे की तरह उसके मखमली शरीर का आनंद ले रहा था। शांता का मादक शरीर और उसकी जानलेवा अदाओं ने दिन्या को पागल कर दिया था। वो पूरे जोश में आकर उसके टपोरे निप्पल और गोरे मादक स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से दबा रहा था।

“जल्दी खत्म करना होगा, आशा बाज़ार गई है, वो अभी आ जाएगी,” शांता बोली।
“वो अभी नहीं आएगी, मैंने उसके साथ पक्या को भेजा है।”

शांता हँसी और बोली, “कौन? वो चालू पक्या? वो गया है उसके साथ?”
“अरे, वो उसकी ज़मीन पर हल चलाएगा।”
“चलाए तो, वैसे भी उसकी जुताई गहरी होती है,” फिर बोला, “सुपीक ज़मीन पर जुताई तो होनी ही चाहिए,” दिन्या ने कहा।
“चल चालू,” ऐसा कहते हुए शांता ने उसके मुँह में मुँह डाला और उसकी जीभ चूसने लगी।

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“अम्म मम… अम्म मम… अहह……”

दिन्या ने शांता की साड़ी ऊपर करके उसके कूल्हे मसलने शुरू किए। उसकी चूत को रगड़ने लगा। एक पल की देर न करते हुए उसने उसकी पैंटी उतार फेंकी।

शांता पैर फैलाकर तैयार ही थी।

पिंट्या पहली बार किसी को चुदते हुए देख रहा था। उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। दिन्या ने अपना लंबा मोटा हथियार बाहर निकाला, जो अच्छा खड़ा हो गया था। उसने उसे उसकी चूत पर रखा और रगड़ने लगा। शांता सिसकारियाँ भरने लगी थी।

“आह…
अम्म्म आईगं… अम्म मम…”

शांता की चूत बहुत रिस रही थी। दिन्या उसे लंड डालकर अच्छे से ठोक रहा था।
ठोक-ठोक-ठोक करने के बाद अचानक उसने अपना लंड उसकी गर्म चूत से बाहर निकाला। वो चिकचिक हो गया था। और उसे बोरियों पर सीधा लिटाया और पैर फैलाकर गपकन लंड उसकी चिकचिक गर्म चूत में डाल दिया।
दिन्या का लंड सरकते हुए मौसी की चूत में आर-पार घुस गया, वो तड़प उठी।

“आह्ह हं… अम्म… मम… आह…”
इस बार थोड़ी तकलीफ हुई। ज़ोर-ज़ोर से साँस लेते हुए उसकी चीखें शुरू हो गई थीं।
वो और ज़्यादा पैर फैलाकर उसे उत्तेजित कर रही थी।

“ओह… दिन्या…
आह……
और ज़ोर से डाल दिन्या आह…
अम्म… आउच……
आई गं अहह……”

वो और जोश में आ गया और शांता के आम जैसे बॉल्स को ज़ोर-ज़ोर से मसलते हुए उसकी गीली चूत में सटासट लंड डाल रहा था।
ज़ोर-ज़ोर से डालते हुए दिन्या ने एक ज़ोरदार झटका चूत पर मारा और “आह… आह… शांता… आह…” कहते हुए उसने सारा वीर्य उसकी चूत में छोड़ दिया।

उस शांत माहौल में बस उनकी साँसों की आवाज़ें आ रही थीं।
थोड़ी देर बाद दिन्या ने अपना लंड उसकी चूत के छेद से बाहर निकाला।
देखा तो उसने शांता की गर्म चूत को अपने वीर्य से लबालब भर दिया था।
उसकी मादक चूत से दिन्या का वीर्य टपक रहा था।

दिन्या और शांता पसीने से तर हो गए थे। दोनों ने खुद को संभाला और शांता अपने काम पर लग गई और दिन्या लकड़ियाँ तोड़ने चला गया। पिंट्या ने जो देखा था, उसे देखकर उसकी हालत खराब हो गई थी। अब उसे सब समझ आ गया था। शांता बाहर से साधी-सुधी दिखती थी, लेकिन अंदर से वो अच्छी तरह वासना से भरी हुई थी।

बाकी की कहानी अगले हिस्से में।मौसी, माँ और गाँव की मस्ती 2

 

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