नमस्ते दोस्तों और दोस्तिनों, मेरा नाम आशा है।
ये कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है, इसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी सिर्फ़ मनोरंजन के लिए है।
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इधर आशा जैसी मादक औरत के साथ पक्या गाँव के बाज़ार में घूम रहा था। उसने जानबूझकर आशा को आगे चलने को कहा था, ताकि वो उसे पीछे से अच्छे से देख सके। उसका वो कर्वी शरीर, उस पर पहनी हुई नीली साड़ी बेहद मादक लग रही थी। पक्या उसे देखकर पागल हो गया था। पक्या मौसी का पड़ोसी था। उम्र में वो 50 साल का था। उसके दो बच्चे थे। उसकी पत्नी 8 साल पहले मर चुकी थी। दिखने में उसकी बॉडी ऐसी थी कि किसी पहलवान को भी शर्मिंदा कर दे।
बाज़ार से खरीदारी खत्म करके वो आशा को अपनी बाइक पर लेकर घर आया।
सामान घर में रखकर वो बोला,
“आशा वाहिनी, आप खाना खाकर दोपहर को आराम कर लीजिए।”
“कोई काम हो तो बता देना,” ऐसा कहते हुए वो हँसा।
आशा ने भी मुस्कुराते हुए घर में कदम रखा। पीछे से दिख रही उसकी कर्वी बॉडी को वो निहारता रहा।
पिंट्या ने जो कुछ देखा था, वो अपनी माँ आशा को बता दिया। आशा को ये सुनकर धक्का लगा। लेकिन उसे भी पता था कि भाईसाहब बीमार होने की वजह से शांता की आग बुझाने में सक्षम नहीं थे। तो अगर उसने किसी और से शारीरिक सुख लिया तो क्या हुआ? उसने पिंट्या को ये सब किसी को न बताने को कहा और उसके हाथ में बाज़ार से लाया हुआ खाने का सामान थमा दिया। पिंट्या खुशी-खुशी बाहर चला गया।
आशा ने इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया। लेकिन पक्या की नज़र आशा पर टिकी हुई थी। उसकी हर हरकत पर उसकी निगाह थी। गाँव में घर एक-दूसरे से दूर-दूर थे।
पक्या, मौसी और दिन्या के घर पास-पास थे, लेकिन बाकी घर दूर-दूर थे, इसलिए सब कुछ चुपके-चुपके चल रहा था। घर की बात बाहर किसी को पता नहीं चलती थी। लेकिन आशा अब शांता पर नज़र रखे हुए थी। आशा भी वैसे खूब कामुक थी, उसके भी शरीर में चिंगारी सुलग रही थी।
एक दिन आशा और शांता नदी पर कपड़े धोने गईं, साथ में पिंट्या भी था। पक्या को ये पता चलते ही वो भी अपने गुरुओं (मवेशियों) को पानी पिलाने के बहाने नदी पर चला गया। दोनों नदी किनारे कपड़े धो रही थीं। साड़ी भीग न जाए, इसलिए दोनों ने साड़ी घुटनों तक ऊपर उठा रखी थी। पक्या झाड़ियों में खड़ा होकर उन्हें देख रहा था। उसका अंदाज़ा सही था। आशा की जाँघें बहुत गोरी थीं। गोरी चमकती पिंडलियाँ, पीले-चमकीले घुटने देखकर उसकी हालत खराब हो गई। कपड़े धोते वक्त उसके बड़े स्तन हिल रहे थे। अब वो उनके पास चला गया। कपड़े धोते वक्त पल्लू किसी रस्सी की तरह एक जगह इकट्ठा हो गया था, जिससे
ब्लाउज़ का गला पूरा दिख रहा था। हल्दी जैसे पीले-चमकीले गोरे स्तन उसे ललकार रहे थे। उसके अनुमान से उसके दोनों कबूतर बड़े थे। उसके कान गर्म हो गए, लिंग सख्त होकर फड़फड़ा उठा। वो सामने खड़ा हो गया, जिससे आशा और शांता थोड़ा असहज हो गईं। बीच-बीच में पल्लू ठीक करती रहीं। कपड़े धुलने तक पक्या जिद्दी की तरह वहीं खड़ा रहा।
उसे इस बात की परवाह नहीं थी कि आशा को क्या लगेगा। अब आशा उसके ठीक सामने खड़ी थी और उसका नक्शेदार शरीर वो अपनी भूखी नज़रों से पी रहा था। आशा वो नज़र पहचानती थी। वो औरत थी और पुरुष की कामुक नज़र को औरतें तुरंत भाँप लेती हैं। कपड़े धोने के बाद दोनों ने साड़ी ठीक की, पल्लू संभाला। धुले कपड़ों की बाल्टी सिर पर रखी। हाथ ऊपर खींचने से दोनों के ब्लाउज़ और साड़ी के बीच का हिस्सा और उभरकर दिख रहा था।
आशा ने शांता मौसी से कहा, “तुझे बहुत थकान होती होगी, घर का काम, खेत का काम।” वो बोली, “चलता है, औरत का जन्म ही ऐसा है। ऊपर से बीमार पति, तो क्या करें?” ऐसा कहकर दोनों घर की ओर निकल पड़ीं। पक्या भी गुरुओं को लेकर चल पड़ा।
दिन ढल गया। रात को पक्या उनके घर टीवी देखने आया। गाँव में जल्दी खाना खाकर जल्दी सो जाते हैं। इसलिए 9 बजे ही सब सो गए। पक्या और दिन्या रात 11 बजे फिल्म खत्म होने के बाद सोने गए। पक्या घर जाने का बोलकर घर नहीं गया, बल्कि घर के पीछे की ओर चला गया। और पीछे की छोटी-सी दरार से वो आशा को देखने लगा। पिंट्या गहरी नींद में था, लेकिन आशा सोई नहीं थी। उसे रात को घर में क्या खेल होता है, वो देखना था। धीरे से दरवाजे पर खटखट हुई तो
वो चुपके से उठी और दरवाजे की दरार से झाँकने लगी।
शांता ने दरवाजा खोला। दरवाजे पर खड़े शख्स को देखते ही उसके होंठों पर मोहक मुस्कान फैल गई। मौसी एक तरफ हुई तो वो शख्स तेज़ी से अंदर घुसा। अगले ही पल उसने शांता को अपनी बाँहों में लिया और उसके गालों, गर्दन और होंठों पर चुम्बनों की बरसात कर दी।
“ओह… रुक दिन्या ज़रा… इतनी क्या जल्दी है…” दिन्या की बेसब्री देखकर मौसी बोली।
“कितना रुकूँ शांता… एक तो तू कई दिनों से मिली नहीं और मिली तो रुकने को कहती है।
कैसे सब्र करूँ मैं… सामने पानी से भरा कुआँ देखकर प्यासा सब्र करेगा क्या?” ऐसा कहते हुए दिन्या ने एक हाथ से उसके भरे हुए स्तनों को मसला।
दूसरे हाथ से उसके नितंबों को थपथपाने लगा। उसके उस स्पर्श से शांता रोमांचित होने लगी।
“क्या करूँ मैं दिन्या? रातभर तेरी बाँहों में रहने की मुझे भी इच्छा है… लेकिन पति और बच्चे हैं। उनकी भी फिक्र करनी पड़ती है। मुझे… कभी-कभी डर लगता है।
दिन्या… मेरे पति को हमारे प्यार के बारे में पता चला तो वो मुझे घर से निकाल देगा…” शांता बोली। वो भी अब उसकी छेड़खानी का जवाब देने लगी थी।
“डर मत शांता… पति ने निकाला तो मैं तुझसे शादी करूँगा…” ऐसा कहते हुए उसने शांता के ब्लाउज़ के बटन खोलने शुरू किए। शांता ने ब्रा नहीं पहनी थी।
इसलिए ब्लाउज़ खोलते ही उसके भरे हुए स्तन आज़ाद हो गए। उसके चुनौती देने वाले भरे स्तनों को कुछ देर दबाने के बाद दिन्या ने उसका पेटीकोट भी उतार दिया।
शांता के शरीर पर सिर्फ़ चड्डी बची थी। उसका मदमस्त भरा हुआ शरीर देखते ही दिन्या पागल हो गया। उसे बाँहों में कसकर उसके नाज़ुक होंठों के चुम्बन लेने लगा।
उसके स्तनों को ज़ोर-ज़ोर से दबाने लगा। शांता उन्माद में चीखते हुए उसे लिपटने लगी। न रह सका तो उसने भी दिन्या के कपड़े उतार दिए। उसका मज़बूत लंड हाथ में लेकर सहलाने लगी।
दिन्या उसके स्तनों को बारी-बारी से चूसने लगा। शांता बेसुध होकर चीखने लगी।
“सीई… ई दिन्या… मज़ा आ रहा है रे, लेकिन अब मुझसे रहा नहीं जाता रे। तेरा डंडा मेरी धड़कती चूत में डाल दे… घुसा दे… हाय जल्दी घुसा… अंदर…” ऐसा कहते हुए उसने
खुद अपनी चड्डी उतारी और जाँघें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई। दिन्या पूरी तरह कामुक हो गया था… उसने नीचे झुककर उसकी मस्त चूत के चुम्बन लिए और उस पर झपटा।
शांता ने उसका लंड हाथ में पकड़कर छेद पर रखा, उसी के साथ दिन्या ने ज़ोर का धक्का मारा।
“अहाहा… ओह… सी… ई… कितना मस्त डालता है रे… अंदर… बहुत मस्त… तेरे इस पहले धक्के में ही मैं फिदा हो गई… अब रुक मत… ज़ोर से ठोक… मेरी चूत को
ऐसी रगड़ चाहिए आह…” शांता आनंद से बड़बड़ा रही थी।
और दिन्या तीव्रता से ठोकने लगा था। उसका लंड उसकी चूत की गहराई तक पहुँच रहा था। तेज़ी से अंदर-बाहर हो रहा था। उसके धक्कों का जवाब शांता भी कमर हिलाकर दे रही थी।
उसे कस रही थी। दोनों की ही चरम सुख पाने की ज़ोरदार कोशिश शुरू हो गई थी।
शांता अपनी चूत की पंखुड़ियों को उसके लंड के चारों ओर कसकर उसका पानी सोखने की कोशिश करने लगी। लेकिन दिन्या झड़ नहीं रहा था। उसकी रफ्तार बढ़ती जा रही थी। पच-पच उसका लंड उसकी चूत में घुसल रहा था।
आखिर वो वक्त आ ही गया… दिन्या ने उसके स्तनों को ज़ोर से कसकर एक दमदार धक्का मारा। उसका जमा हुआ पानी उसकी चूत में उड़ गया। शांता ने उसे कसकर बाँहों में जकड़ लिया था।
“हाय… दिन्या… तुझसे मुझे हमेशा चरम सुख मिलता है देख… तेरी बाँहों में मैं पूरी तरह सुखी हो जाती हूँ…” शांता उसके चुम्बन लेते हुए बोली।
“शांता, तेरी बाँहों में… मुझे भी स्वर्ग का सुख मिलता है देख…” दिन्या उससे अलग होते हुए बोला। उसने कपड़े पहने और वो घर से बाहर निकल गया।
ये सब आशा देख रही थी। दोनों का खेल देखकर उसकी भी चूत पानी छोड़ने लगी थी। उसका हाथ अपने आप उसकी चड्डी में चला गया।
अब आशा उन दोनों का और पक्या आशा का खेल देख रहा था।
आशा की छाती से ब्लाउज़ कब का सरक गया था। उसके गोरे बॉल्स आधे बाहर निकल आए थे। उसकी गांड सख्त हो गई थी।
दिन्या शांता मौसी के स्तनों को बारी-बारी से चूस रहा था। शांता बेसुध होकर चीख रही थी।
“सीई… ई दिन्या… मज़ा आ रहा है रे, लेकिन अब मुझसे रहा नहीं जाता रे। तेरा डंडा मेरी धड़कती चूत में डाल दे… घुसा दे… हाय जल्दी घुसा… अंदर…” ऐसा कहते हुए उसने
खुद अपनी चड्डी उतारी और जाँघें फैलाकर बिस्तर पर लेट गई। दिन्या पूरी तरह कामुक हो गया था… उसने नीचे झुककर उसकी मस्त चूत के चुम्बन लिए और उस पर झपटा।
शांता ने उसका लंड हाथ में पकड़कर छेद पर रखा, उसी के साथ दिन्या ने ज़ोर का धक्का मारा।
“अहाहा… ओह… सी… ई… कितना मस्त डालता है रे… अंदर… बहुत मस्त… तेरे इस पहले धक्के में ही मैं फिदा हो गई… अब रुक मत… ज़ोर से ठोक… मेरी चूत को
ऐसी रगड़ चाहिए आह…” शांता आनंद से बड़बड़ा रही थी। और दिन्या तीव्रता से ठोकने लगा था। उसका लंड उसकी चूत की गहराई तक पहुँच रहा था। तेज़ी से अंदर-बाहर हो रहा था।
उसके धक्कों का जवाब शांता भी कमर हिलाकर दे रही थी। उसे कस रही थी। दोनों की ही चरम सुख पाने की ज़ोरदार कोशिश शुरू हो गई थी।
शांता अपनी चूत की पंखुड़ियों को उसके लंड के चारों ओर कसकर उसका पानी सोखने की कोशिश करने लगी। लेकिन दिन्या झड़ नहीं रहा था। उसकी रफ्तार बढ़ती जा रही थी। पच-पच उसका लंड उसकी चूत में घुसल रहा था। उनका खेल देखकर आशा भी ज़ोर-ज़ोर से अपनी उंगलियाँ अपनी चूत में अंदर-बाहर कर रही थी।
आखिर वो वक्त आ ही गया… दिन्या ने उसके स्तनों को ज़ोर से कसकर एक दमदार धक्का मारा। उसका जमा हुआ पानी उसकी चूत में उड़ गया। शांता ने उसे कसकर बाँहों में जकड़ लिया था।
इधर आशा भी झड़ गई थी।
“हाय… दिन्या… तुझसे मुझे हमेशा चरम सुख मिलता है देख… तेरी बाँहों में मैं पूरी तरह सुखी हो जाती हूँ…” शांता उसके चुम्बन लेते हुए बोली।
“शांता, तेरी बाँहों में… मुझे भी स्वर्ग का सुख मिलता है देख…” दिन्या उससे अलग होते हुए बोला। उसने कपड़े पहने और वो घर से बाहर निकल गया।
इसके बाद शांता मौसी सो गई। और उनका खेल देखकर झड़ चुकी आशा भी गहरी नींद में सो गई। आशा को ऐसा करते देख पक्या भी बहुत खुश हो गया। क्योंकि तवा गर्म हो चुका था। अब उसे बस अपनी रोटी सेंकनी थी। वो सुनहरे मौके का इंतज़ार कर रहा था।
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